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Rashmi Prabha

Abstract

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Rashmi Prabha

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काश ! मान लिया होता

काश ! मान लिया होता

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बुरा लगता है

जब कोई सिखाने लगता है अपने अनुभवों से

लेकिन, फिर एकांत हो या भीड़

ज़िन्दगी भर

हथौड़े की तरह यह बात पीछा करती है

"काश ! मान लिया होता"


धैर्य ज़रूरी है,

समझना होगा - कोई यूँ ही नहीं बोलता

विशेषकर, "माँ" !

उसकी आँखों में

उसकी बेचैन करवटों में

उसके भयभीत लम्हों में...


ऐसी न जाने कितनी बातें होती हैं,

जो वह कहती नहीं,

पर रोकती है,

हिदायतें देती है,


झल्लाना एक दिन पछतावा बन जाता है

और फिर शुरू होता है वही सिलसिला

जब तुम्हारे अनुभवी विचार

अपने से छोटे का हाथ पकड़कर कहते हैं,

इतना ज़रूरी तो नहीं...


विशेषकर उनको,

जिनको तुमने गोद में उठाया हो

जिनके रोने पर तुम्हें नींद न आई हो

सोचो,

जब वे नहीं सुनेंगे,तो कैसा लगेगा !

कितने सारे दृश्य तुम्हें मथेंगे

और ....


बता पाना मुश्किल होता है

बहुत मुश्किल !

इसलिए,

मान लेना चाहिए,

मान लेना कुछ दिन की उदासी हो सकती है

लेकिन नहीं मानना... !


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