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Bhavna Thaker

Abstract

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Bhavna Thaker

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नज़रिया

नज़रिया

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सदियों से चले आ रहे मर्दाना नज़रिए को

बदलकर देखो न जरा 

क्यूँ नहीं भाते 

मेरी सुंदरता की तरह 

मेरी कामयाबी ओर मेरे जीने के अंदाज़ भी तुम्हें।


जब मैं जीती हूँ ज़िन्दगी अपने तौर तरीकों से 

तब क्यों लगता है तुम्हें

की जा रही हूँ तुम्हारे खयालों से परे 

क्यूँ लगता है तुम्हें 

की मैं जा रही हूँ कोई और राह चुने। 


सज सँवर के निकलना मेरा 

तुम्हारी नज़रों को चुभता रहा 

तुम्हें लगा कहीं किसी ओर की नज़रों में 

न बस जाऊँ, न...न मत ड़रो 

मेरा सजना भी मेरी ज़िन्दगी का 

वो हिस्सा है जो आम लड़कियों को भाता है।


जब छोटी सी खुशी पा कर

हँसती हूँ, खिलखिलाती

तब क्यूँ तुम्हें खटकती है

उदासी से थोड़ा उभरकर जीती हूँ 

तो इरादा नहीं होता तुम्हें जलाने का

बस खिलखीलाहट से उर्जा देती हूँ 

हौसलो की उड़ान को।


मेरा चढ़ना कामयाबी की सीढ़ियों पर

नागँवार क्यूँ है तुम्हारे कदमों को

मेरी काबेलियत को देखा तुमने सदा

नीचे नज़रिए से 

कब चाहा मैंने तुमसे आगे निकल जाना 

हाथ थामें संग चलकर ही बढ़ना चाहती हूँ।


हर डगर पे तुम्हारा साथ चाहती हूँ

मंज़िल की तलाश में,

और तुम घबरा जाते हो मेरे तेज कदमों की

रफ़्तार से तुम्हें लगता है 

कहीं मैं आगे न निकल जाऊँ तुम्हारे वजूद से 

इतना मान लो की मैं देह हूँ तो तुम मेरा साया।


अपने साथ ही पाओगे हमेशा 

बस कुछ पाबंदियों को हटाकर देखो

हमारे रिश्ते को

पर्याय ही तो है हम एक दूसरे का।


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