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Sandeep Saras

Abstract

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Sandeep Saras

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बचपन याद आता है

बचपन याद आता है

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बड़ा कितना भी हो जाऊँ, वो बचपन याद आता है।

पुराने घर में था मेरे, जो आँगन, याद आता है।


निवाले गोद में अपनी बिठा करके खिलाती थी,

मेरे गालों पे अम्मा का वो चुम्बन याद आता है।


सुबह बाबा की पूजा, गूँजती मानस की चौपाई,

मेरे माथे पे बाबा का वो चन्दन याद आता है।


कि जब भी खेलकर आते पसीना पोंछ लेते थे,

मेरा रूमाल, वो दादी का दामन याद आता है।


समूचा गाँव जुड़ता था किसी रिश्ते की डोरी से,

वो भीगा प्रेम से रिश्तों का बन्धन याद आता है।


भरा बरसात का पानी, बहाना नाव कागज की,

मुझे बागों में झूला और सावन याद आता है।


मेरे परिवार को जिसने अभी तक जोड़ रक्खा है,

रसोई में रखा चूल्हा वो पावन याद आता है।


महानगरों के कल्चर ने मशीनी कर दिया मुझको,

मुझे वह गाँव का अलमस्त जीवन याद आता है।


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