पाठशाला में रसोई
पाठशाला में रसोई
चाभियों से चल रहे हैं हम खिलौने हो गए हैं।
व्यक्ति दिखते हैं बड़े व्यक्तित्व बौने हो गए हैं।
मेंड़ खुद खाने लगी है खेत की फसलें चुराकर,
आजकल आदर्श भी कितने घिनौने हो गए हैं।
देहरी पर अब सुबह की, कौन ताजापन रखेगा,
सूर्यवंशी रात के बासी बिछौने हो गए हैं।
आज कुंती हर नगर में बेचती है माँ की ममता,
हर गली में कर्ण से परित्यक्त छौने हो गए हैं।
माँग पूरी हो तभी बेटी विदा होगी बिचारी,
कीमती शादी से ज्यादा आज गौने हो गए हैं।
कौन झूठों की सभा में सत्य की देगा गवाही
दाम अपनी ही जुबाँ के औने पौने हो गए हैं।
पाठशालाओं में है बनने लगी जब से रसोई,
श्याम-पट्टों की जगह बर्तन भगौने हो गए हैं।