Sandeep Saras
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मजहब के नाम पर ये इंसान बेचता है,
मासूम जाहिलों के अरमान बेचता है।
मुल्ला खुदा को बेचे तो कम नहीं है पण्डा,
बैठा है मन्दिरों में भगवान बेचता है।
भगवान बेचता ह...
खेल जिंदगी है
पाठशाला में र...
तू मुझे सम्भा...
तुम्हारी नींद...
नहीं बचे यदि ...
यह मतदान हमार...
ढूँढते रह जाओ...
अरमान तिरंगा ...