बच्चे ही रहते तो कितना अच्छा होता। बच्चे ही रहते तो कितना अच्छा होता।
यहाँ हम आज तक उबर ही नहीं पाए पुरातन घटिया सोच से। यहाँ हम आज तक उबर ही नहीं पाए पुरातन घटिया सोच से।
बस अब तेरे साथ निभा के उस कायम करना चाहती हूँ। बस अब तेरे साथ निभा के उस कायम करना चाहती हूँ।
सुबह की धूप सी तुम फैली रहती हो घर-भर में रात में चाँदनी सी छिटक जाती हो सुबह की धूप सी तुम फैली रहती हो घर-भर में रात में चाँदनी सी छिटक जात...
रिश्तों को थोड़ा और नजदीक ले आता है 'पति का बटुआ'। रिश्तों को थोड़ा और नजदीक ले आता है 'पति का बटुआ'।
जरूरी नहीं , औरत हूँ, तो सेवा ही, मेरा धर्म, कर्म हो जरूरी नहीं , औरत हूँ, तो सेवा ही, मेरा धर्म, कर्म हो