बचपन की यादें
बचपन की यादें
बचपन के वो दिन भी क्या दिन थे
बहती पानी में खेलते थे
एक दूसरे पर पानी छिड़कना
आधे नंगे हो कर नहाना।
छुट्टियों के दिन तो बहुत यादगार थे
ना कोई फिक्र ना किसी की खबर थी
बस मज़े में खेलने कूदने के दिन थे
जो भी मिला, उसे दोस्त बनाते थे।
वो कच्चे आम तोड़ना
दूसरों के घर में जाकर छिपना
रात को छत पर जाकर सोना
और आसमान में तारे गिनना।
वो पानी में मछली पकड़ना
और खेतों में बिजूका बनना
पड़ोसन की मटकी को पत्थर मारना
उड़ती पतंग की डोर खींचना।
एक दूसरे के कपड़े पहनना
पेड़ों पर चढ़कर अमरूद खाना
भागती भैंसों की चोटी खींचना
बंदरों की नकल उतारना।
दादी की रसोई में चोरी करना
नानी के पास सोकर कहानी सुनना
हर बात में मस्ती थी
सबके चेहरे पे हँसी थी।
हर बात अब बहुत याद आती है
मन ही मन रुलाती है
खेलते खेलते जैसे बड़े हो गये
हँसना खेलना भूल ही गए
ना जाने कहां गये वो सारे यार
कितने हसीन थे वो बचपन के दिन चार
बड़े होकर तो कुछ मज़ा नहीं आता
बच्चे ही रहते तो कितना अच्छा होता।
काश हम बच्चे ही रह पाते
काश हम बच्चे ही रह पाते।
