मज़हब
मज़हब
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आये थे नंगे जायेंगे नंगे
क्या लेकर आये थे, क्या लेकर जायेंगे।
क्या हमारा, क्या तुम्हारा
जो भी है सब हमारा।
एक आसमान, एक ही धरती
एक ही सूरज दे सबको रौशनी।
फिर किसने बनाया हमें अलग
जब एक ही है सबके खून का रंग
भगवान ने जब दी सबको एक जैसा सिर
दो हाथ,दो आँख और दो पैर
तो जाती से क्यों अलग है हम
जानवरों से लड़ते है बस यही है गम
किसने बांटा है हमें जाती के इस नाम पर
मिल झुलकर जब जीना है हमको इस धरती पर
मजहब से ना तोड़ो हमें साथ ही हमको जीना है
हिंदू मुस्लिम जो भी हो, भाईचारा निभाना है।
अलग अलग रहकर तो टूट बिखर ही जायेंगे
आओ मिलकर जिंदगी का सुंदर चित्र बनायेंगे
हाथ मिलाकर हम सब अब एक होकर जीयेंगे
कोई कुछ भी कहे तो मुँह तोड़ जवाब देंगे।
