सहमी कलियाँ
सहमी कलियाँ
कोयल की आवाज़ खो गई,
बौर गिरे थे कानन में,
सहमे-सहमे पर्वत नदियाँ,
स्पंदन ना वायु में|
आतुरता थम गई परों में,
ठिठके खग हैं टहनी में,
निष्प्राण पुष्प और कली सिसकती,
पीड़ा आँसू आँगन में|
कोयल की आवाज़ खो गई,
बौर गिरे थे कानन में...
सूने सूने अनुराग नयन,
मदमस्ती ना फागुन में,
निष्ठाएं प्रश्न चिन्ह बनी,
फीके पलाश हैं राहों में|
लहू नसों में उबल पड़ा,
रोक नहीं जज़्बातों में|
कोयल की आवाज़ खो गई,
बौर गिरे थे कानन में...