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V. Aaradhyaa

Romance

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V. Aaradhyaa

Romance

प्रेम के रंग रंग जाओ

प्रेम के रंग रंग जाओ

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मैं तो मोहन के प्रेम के रंग में रंगना चाहती थी।

मैं भोली एक नारी यह सब करना चाहती थी।


राह तकती रही श्याम की, अबकि बार शायद आ जाए।

एक एक लम्हा इंतजार का मैं करके हारती थी।


मधुबन में एक बार जाकर प्रिय संग लेकर तरंग।

हर ग़म दूर भगाकर तन मन में ले उमंग।

नाम की चुनरिया ओढ़ कान्हा ,मै , चुनर भिगोना चाहती थी।


यह धरा यह आसमां साक्षी अपने प्यार का।

जिंदगी का यह मौसम लाएं मदहोश बहार का।

फिर तुझे में ही खोकर ये दिन पाना चाहती थी।


रंग बिरंगी खुशियां मेरी, रंग बिरंगी शाम।

हर तरफ तेरी सुरतिया, और लबों पर नाम

कहां हो मोहन बांसुरी बजाओ, बंशी की धुन में चाहती थी।



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