नवगीत
नवगीत
जाने कब आएगा सावन
सुगना के जीवन में
सूरज से पहले उठ जाती
संग भोर के चलती
पल-पल मरती जीती पल-पल
साथ चांद के ढलती
सूखा साग खाट भी टूटी
आंसू भरे सपन में
घर की खातिर दर-दर भटके
पर घर में अनजानी
कौन लिखेगा किसको फ़ुरसत
उसकी करुण कहानी
जनम दुबारा मिले न मुझको
अरज करे मन-मन में
कागज पत्तर दफ्तर-दफ्तर
दे-दे कर है हारी
मूरख वो नादान न जाने
अर्जी है सरकारी
हसरत से देखे है रस्ता
ख्वाबों के आंगन में।
