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सीमा शर्मा सृजिता

Romance Classics

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सीमा शर्मा सृजिता

Romance Classics

पूस की रात

पूस की रात

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ये पूस की रात सदियों सी लग रही है 

सर्द है मगर विरह में तुम्हारे जल रही है 


टूट रहा है दिल का कोई टुकडा़ बिखरा सा 

मचल रहा मन मन्दिर में ख्याब तुम्हारा भंवरा सा 


चांद भी बडा़ उदास लग रहा देख हाल मुझ विरहन का 

तारे सारे नम - नम से हैं समझ हाल मेरे मन का 


शीत लहर बन रही दीवानी मुझको छू कर जाती है 

याद नहीं कोई लम्हा जब याद तुम्हारी नहीं आती है 


अपलक सी बैठी हूं कब से इन्तजार में मैं जोगन 

आओगे दिल कहता है सब छोड़ के तुम इक दिन 


इसी आस में जी रही हूं हर पल मैं जल जल कर 

पूर्ण करोगे तपस्या मेरी मेरे प्रियतम मेरे बनकर।


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