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Bhavna Thaker

Classics

4  

Bhavna Thaker

Classics

कशिश

कशिश

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साँसों की जुम्बिश पर एक रागिनी ने दस्तक दी

सियाह खानों में रोशनी भरती एक याद की कशिश

उमसती उठी, दूर से आ रही संदली बयार से.!


यकीन कायम है दिल का,

मरती साँसों में जान भरने आओगे तुम,

नदी का एकाकीपन पुल जानता है.! कहो जानते हो ना ?


मेरे हर उफ़ान पर गीले हुए हो आज कहीं से आकर इन

कोरी सूखी आँखों में नमी भर जाओ ना.!

इस इंतज़ार का क्या जिसे जाने वाले की

फ़ितरत मालूम ही नहीं, इस नींद का क्या जिसे


सपनो की हकीकत मालूम ही नहीं.! 

चलो आख़री सवाल इस साकी का क्या ?

जिसे नशे का नशा मालूम ही नहीं, गम की गर्द गहरी है, 


दो बूँद हलक के नीचे उतार लूँ तब नींद और

नशे की आगोश में यादें दफ़न होगी.!

तुम्हारी यादों का क्या जो पल पल मारती है मासूम मृत्यु सी

मेरा क्या मुझे तो तुम्हारे सिवा कुछ भी मालूम ही नहीं।


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