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Sumit Malhotra

Classics Inspirational

3.4  

Sumit Malhotra

Classics Inspirational

थकान और थकावट

थकान और थकावट

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52


थक कर चूर हो गया ये शरीर का हर अंग,

फिर भी जाने कहां तक चलना है।

जाने कहां मिलेगी मंजिल,


नजर नहीं आ रहा अभी कोई आशियाना।

ये झंझट, ये रोड़े-पत्थर बड़ी मुसीबते है,


पड़ रही क्यों मुझ पर वक्त की दिक्कते है।

कभी दिल कहता है,चलते रहो,


कभी हारकर बैठने को करता है मन।

ये बेचैनी दिल की कब तक रहेगी,


कब तक मुसीबत बनेगा ये जालिम जमाना।

क्या मैं अब थक गया तो बैठ जाऊ,


सबकुछ सहते-सहते कुछ ऐसा कर जाऊं।

ना सुनूं सबकी जो कहे और मैं करता जाऊं,


करूं अपने मन की सोचकर क्या है मुझे पाना।

आँसू बहते है बहने दो कि बड़ा निष्ठुर है ये जमाना,


ये दिल तो है पगला कभी रोता तो कभी हंसता।

जिस्मे-पीड़ा को सहना भी बिछोह है,


जितना मुझे ये जमाने द्धारा पीड़ा देने का शौक है।

नयन मेरे ये बरस-बरस चले है,


बस थक गया हूं कि पूरा एक कदम

चलना भी अब व्यर्थ है।


आज कैसा समय आया अलबेला है,

मैं और मेरा दर्द जो मुझे सहना अकेला है।


थक कर चूर हो गया ये शरीर का हर अंग,

फिर भी जाने कहां तक चलना है।


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