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Dimple Khari

Classics

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Dimple Khari

Classics

ग़ज़ल

ग़ज़ल

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हँसी मेरे लबों से कही छूट सी गयी,

खुशियां न जाने क्यूँ हमसे रूठ सी गयी।

जी रहे हैं तन्हा हम अपनी जिंदगी,

साथ अपनों का था जैसे खुदा की बंदगी।


छूटा जो साथ सबका हम फिरे दर बदर

भूल बैठे है खुद को न किसी की ख़बर।

चल पड़े अकेले इन राहों में हम,

जीना भी ना चाहें ना निकले ये दम।


पुरानी डगर से जो निकले कभी,

आश दिल की हैं ये कोई मिल जाये अभी।

मिन्नतें बहुत की हैं मंदिर में जा,

पूरी हो जाये मन्नत ना टूटे अरमां।


चाहते होंगी पूरी जब मिलेंगे अपने

चैन मिल जाये दिल को पूरे होंगे सपनें।

छूटेगी ना हँसी फिर लबों से कभी,

भर जाएँगी खुशिया जिंदगी में सभी।


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