सफर
सफर
जब मैं निकला सफर पर
तो देखा भारत की विविधता को
कहीं हरियाली बाग बगीचे
कहीं देखा खेतों में किसान को
कहीं कस्बों मे टिमटीमाती दीपक
कहीं शहर सुशोभित रौशनी से
कहीं कोयल की मधुर अवाजे
कहीं शोर मची चिड़िओं के गीतों से
कहीं देखा पर्वत पहाड़ तो
कहीं जंगल से आ रही अवाजे
कहीं सागर तट के सुबह सुहानी
कहीं नभ को चूमे हिम चोटी सजे
कहीं रोड़ो पर दौड़ती गाड़ियां
कहीं प्राचीन महल, इमारत
कहीं मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वरा
कहीं फसलों से लहराते खेत
कहीं फूलो ने महक बिखरे
कहीं सुसज्जित क्यारी है
कहीं सुने गायों की घण्टी
ये दृश्य बहुत ही प्यारी है
कहीं पुआल की ढेरी से
सज रहा है खलिहान
कहीं मंदिर से भजन बज रहा
कहीं सुने मस्जिद से अजान
कहीं बच्चे खेल रहे है
कहीं योग करते जवान
कहीं आम की मंजर से
महक उठी है उपवन
आये यहाँ अनेकों प्राणी
ये धरा कई सभ्यता पाला है
जब तक यहाँ जीवन है
ये सफर ना रुकने वाला है।
