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Dimple Khari

Tragedy

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Dimple Khari

Tragedy

एक माँ की व्यथा

एक माँ की व्यथा

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एक दुखियारी माँ के दिल की व्यथा मैं सुनाऊँ

हँसकर भी क्या गुजरे उसपर ये तुम्हे मैं बताऊँ।

बच्चों के लिए सब कुछ सहती है वो,

दर्द अपना न किसी से कहती है वो।

सींचा था जिस अंश को बड़े नाजों से,

दुखाया दिल उसी ने कुकर्म काजों से।

बड़े हुए और भूल गए ,

माँ के सब अहसानो को।

निज स्वार्थ में होकर बच्चो ने ,

सुना दिया फरमानों को।

कोई हो गया अलग उस माँ से ,

कोई स्वयं दुल्हनिया ले आया ।

बच्चो की हर करनी का ,

बोझ फिर माँ के सिर आया।

कितने भी दुःख दिए उस माँ को ,

पर दिल उनको दुआ निकली।

फिर एक दिन हो गयी एक वारदात,

बहुत दुखद थी वो बात।

जिस बेटे को पाला पोसा था,

उसने ही हाथ उठा दिया ।

कभी था माँ का छोटा बालक,

आज बड़ापन दिखा दिया।

दिल में छुपकर हर दर्द को ,

निभाया माँ ने अपने फ़र्ज़ को।

घूंट जहर का पीकर के ,

उफ़ तक ना वो बोली थी।

बच्चो के कृत्य घिनोने की ,

ना बात किसी से खोली थी ।

बस आश यही थी सब संवर जाये,

ये रिश्ते यूं ना बिखर जाये।

चली गयी जब सहते सहते,

तब कमी फिर माँ की जानी थी ,

सबको प्यार दिया था उसने ,

पर उसकी दर्द भरी कहानी थी!


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