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Dimple Khari

Tragedy

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Dimple Khari

Tragedy

बाल मज़दूरी

बाल मज़दूरी

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एक नन्ही सी जान का,

हो गया जीवन कुर्बान।

देख जूझती बीमार माँ को,

और बहन का भूखा पेट।

नन्हे हाथ में ले ली कुदाल,

चल पड़ा बाल मजदूरी की चाल।

रोज मालिक की दुत्कार,

फिर भी हिम्मत बांधे।

खुद से ज्यादा बोझ उठाये,

उसके नन्हे कांधे।

उम्र हैं उसकी भी पढ़ने की,

पर वो रद्दी को ढोता है।

मालिक की जब मार पड़े तो,

फिर चुपके से रोता हैं।

कभी ढ़ाबे में बर्तन धोकर,

पल रहा परिवार को।

बची हुई थाली से खाकर,

मारा भूख की मार को।

नियम चलाया सरकार ने,

बंद करो बाल मजदूरी को।

मजदूरी तो बंद करो पर,

समझो बाल की मज़बूरी को।

कुछ हल निकालो इसका भी,

बचपन जी सके हर बच्चा भी।


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