ग़ज़ल
ग़ज़ल
कभी वो हमें खोने से डरते थे,
आज मैं उन्हें खोने के डर में जी रही हूँ।
ऐसा नहीं है की चाहत नहीं उन्हें हमसे ,
उनकी उम्मीद और ख़्वाहिश भी मैं ही रही हूँ।
बस कुछ अन्दाज़ बदल गये ,
कुछ बदले हैं जज़्बात।
रिश्ते की डोर नहीं टूटी ,
बस बदले हैं हालात।
नहीं प्यार है उनका झूठा ,
नहीं प्यार है मेरा रूठा।
फिर भी जाने क्यों कश्मकश है
या क़िस्मत का अन्दाज़ अनूठा।
