ग़ज़ल
ग़ज़ल
तोड़ी थी जिसकी खातिर हमने हदे सारी,
आज उसने ही हमें हद में रहना सिखा दिया।
कभी कहते थे प्यार हैं तुमसे,
आज प्यार को महज़ खिलौना बना दिया।
देखा था साथ मिलकर ख्वाबो का आशियाना,
मिलाकर खाक में तुमने ऐसा क्यों सिला दिया।
मन था मेरा निश्छल था प्रेम का समंदर,
नफरत को मेरे दिल में क्यों तूने जगा दिया।
न कोई खता थी न गुस्ताखी थी मेरी,
किस खता पर तूने ये दामन छुड़ा लिया।
थक गए हम अब तेरी यादों के असीर बनकर,
हाल-ए-तक़दीर ने तुझसे यूँ रूबरू करा दिया ।