तुम चले आओ न
तुम चले आओ न
सब्र का ये बांध टूटने से पहले
एक बार तुम मुझे झलक अपनी दिखा जाओ न ।।
गले से अपने लगा जाओ न ,
लटों को मेरी सँवार जाओ न ।।
अँखियों से बहती इंतज़ार की धरा
को विराम दे जाओ न ।।
इन सुर्ख होंठो पे सजने वाली
मुस्कान को संग ले आओ न ।।
कानों में रस की तरह घुलने वाली अपनी
हंसी और आवाज मुझे सुना जाओ न ।।
जिन अँखियों में बसा प्रेम का झरना है
वो प्रेम अँखियाँ मुझे दिखा जाओ न ।।
जिस चेहरे के दर्शन मात्र से दिन का
लम्हा लम्हा खास हो जाता है,
वो चेहरा मुझे दिखा जाओ न ।।
जिसके स्पर्श मात्र से ये दिल सुकून से भर जाता है
मन को जी भर के जीने को जी चाहता है ,
और प्रेम बरखा बन बरस जाने को जी चाहता है
वो स्पर्श संग अपने ले आओ न ,
हां तुम चले आओ न ।।