मैं और तुम
मैं और तुम
मैं तुम हां, मैं और तुम
संग संग दुनिया से कही दूर चले और गुम जाए ।।
हम दोनों में न हो दूरी मिलो की
न हो बेड़िया कामों की
न हो बंदिश समय की
और न हो दीवार फ़ासलों की
बस हो क़रीब हम तुम हां हम तुम ।।
न बातें हो दुनिया की
न बातें हो जहान की
न आँखे नम हो
न बातों में कोई दर्द हो
बस मैं और तुम दुनिया से दूर
संग संग कहीं गुम हो ।।
न नज़रे हो जमाने की
न नज़ारों की कमी हो
न तड़पन मिलन की हो
न सितम ए मोहब्बत हो
न टीस कोई लफ़्ज़ों में हो
बस मैं और तुम हो, संग संग दुनिया
से दूर कही गुम हो ।।
न मिलन बेला बीत जाने की फ़िक्र हो
न कमी कोई प्रेम रंग में हो
न बात कोई अधूरी हो
न धड़कनों का मिलन अधूरा हो
न साँसे अलग हो
बस मैं और तुम हो, दुनिया से दूर संग कही गुम हो ।।
मुट्ठी में क़ैद एक हसीन मिलन रात हो
जिसके बाद हर सुबह हमारे प्रेम की निशानी में हो
जहाँ तू और मैं दुनिया कि तमाम बातों से
दूर संग संग कही गुम हो ।।
जहाँ खुशियां लहराये साँसों में और इश्क़ का
एहसास हो, धड़कनों में तसल्ली हो
सुकूँ सा विश्वास हो
मैं और तुम हां मैं और तुम संग संग कही गुम हो ।।