तेरी मेरी ज़िंदगी
तेरी मेरी ज़िंदगी
अक्सर रातों में मेरी आते हो तुम ,
बालों को मेरे सहलाते हो तुम ,
बाहों में अपनी समेट मुझे दर्द सारे हर जाते हो तुम
मैं हो के बेफिक्र सौंप देती हूँ ख़ुद को तुझमें ,
जकड़न का सिलसिला कुछ यूं बढ़ते बढ़ता है कि
फिर दो होने का भाव खो जाता है कहीं
साँसों का धड़कनों संग संवाद गहराता है ,
मिलने लगती है दोनों की रूहें ऐसे जैसे जन्मों
की प्यासी को मिला झरना हो ,
बस उसी पल साकार होता लगता है
तेरी मेरी ज़िन्दगी का सपना ।।