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Archana Saxena

Classics

4.5  

Archana Saxena

Classics

चितचोर चितवन

चितचोर चितवन

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चितचोर चितवन चित चुरा कर ले गयी

मुख से न फूटे बोल मैं टकटकी बाँधे रह गयी 


 मोर मुकुट मस्तक विराजे

तिलक सोहे भाल पे

गले में वैजंतीमाला कहने क्या नन्दलाल के


बाँसुरी की धुन भी कुछ तो कह गयी

बिन बोले टकटकी बाँधे रह गयी


श्याम बिन बस और कुछ मुझको तो अब भाता नहीं

जोगन हुयी किसी और से मेरा तो अब नाता नहीं


गीत गाकर सबसे मैं यह कह गयी

बिन बोले टकटकी बाँधे रह गयी


रंगों से ये सजी है धरती हर तरफ ही बिखरे रंग हैं

मुझको भाये श्याम रंग बस वह मेरे कान्हा का रंग है


प्रीत में मीरा दीवानी जाने क्या क्या कह गयी

बिन बोले टकटकी बाँधे रह गयी।


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