ज़िन्दगी कैसी है तु
ज़िन्दगी कैसी है तु
ज़िन्दगी कैसे पहेली हाए,
कभी तो हँँसाए , कभी ये रूलाए,
ना जाने किस मोड़़ पर साथ दे जाएँ
ना जाने कब नाकामियाबीयों से डर छुुप जाएँ।
ज़िन्दगी ना जानेे कितने रंग बनाएँ
कभी खुद उलझ जाएँ,कभी खुद सुलझ जाएँ,
साथ चले सफ़र बन कर,
और कभी साथ छोड़ जाएँ।
क्या कहनेे है , ज़िन्दगी तेरे
कभी तु अपना बनाएँ,
कभी पराया कर पीछे छोड़ जाएँ,
क्या बात है तेरी ज़िन्दगी !