चंद लम्हे
चंद लम्हे
कहीं किसी यादों में हमने खुद को लिखा है
एक रात में खुद कुुुछ नया पिरोया है
किसी शाम को गंगा किनारे बिताया है
कुुुछ सुबह हसीं में गूंजी है
तो कुछ आधी कच्ची नींद में
कई यादेंं कुछ सिखाती है
तो कुछ रूलाती है
बस कुछ ऐसे ही चंद लम्हेे हैं
याद कर के मुसकुराने को।