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Sandeep kumar Tiwari

Classics

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Sandeep kumar Tiwari

Classics

ग़ज़ल

ग़ज़ल

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सबको सबकुछ रहबर नहीं देता 

दिल देता है तो घर नहीं देता


कोई मख़मल पे सो नहीं पाता

कुछ नींदों को बिस्तर नहीं देता


है हम पर रहमत भी बहुत करता

रब हम को झोलीभर नहीं देता


सबकुछ मिलकर भी प्यास होती है

सबको एक सा दिलवर नहीं देता 


'बेघर' कुछ तो इंसाफ करता है 

मौला  हरदम  ठोकर नहीं देता।


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