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महेश जैन 'ज्योति'

Classics

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महेश जैन 'ज्योति'

Classics

देखिये न !

देखिये न !

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दरारें दिख रहीं‌ हैं आज दरिया के किनारों में ।

घुली है पीर सी चहुँ ओर बिखरी इन बहारों में ।।१

जरा भी मन नहीं होता सुबह अखबार पढ़ने को ।

पढ़ूँ तो एक झंझावात सा उठता विचारों में ।।२

बचें उससे दिखाई दे कहीं तो सामने कातिल।

न जाने कब कहाँ चुप वार कर जाये इशारों में ।।३

व्यवस्था सामने इसके हुईं सारी धराशायी ।

गुजर कर भी लगे हैं लोग देखो तो कतारों में ।।४

कुल्हाड़ी पाँव पर खुद मार अपने रो रहे हैं हम ।

नहीं सूरज मिलेगा टिमटिमाते इन सितारों में ।।५

नमस्ते दूर की अच्छी सिखाया रोग ने हमको ।

मिलेगी तुष्टि केवल नेह की नन्हीं फुहारों में ।।६

कलम तुझको ‌कसम ‌है सत्य केवल सत्य ही लिखना ।

सच्चाई है नहीँँ इन खोखले से व्यर्थ नारों में ।।७


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