परिभाषा धर्म की
परिभाषा धर्म की
मोक्ष मार्ग भी मिल जायेगा, पहले मन में प्यार भरें ।
दोनों हाथों प्रेम उलीचें, प्रीत करें मनुहार करें ।।
वह भी क्या मन जिसके अंदर, वात्सल्य की धार न हो ।
तीर्थ वही मन हो जाता है, जिसमें कहीं विकार न हो ।।
अपनी दिनचर्या को हमने, परखा नहीं कसौटी पर ।
जीवन बीता केवल जोड़े, कंकर-पत्थर मुट्ठी भर ।।
सोचा नहीं कभी भी संचित, यहीं धरा रह जायेगा ।
निश्चित है गगरी टूटेगी, पानी सा बह जायेगा ।।
प्रश्न कभी तो करें स्वयं से, कौन कहाँ से आये हम ?
मेरा-मेरा करते रहते, लिया जन्म क्या लाये हम ?
किसकी माया है ये सारी, किंचित नहीं विचार किया ।
खाया-पीया सोये-जागे, जीवन व्यर्थ गुजार दिया ।।
सबसे प्यारा जैन धर्म है, त्याग सिखाता जीवन में ।
भाव अहिंसा का भरता है, धर्म हमारा जन-मन में ।।
जियो और जीने दो सबको, धर्म हमारा सिखलाता ।
जैन धर्म को जो भी पाले, श्रावक वही मोक्ष पाता ।।