ढाई आखर प्रेम
ढाई आखर प्रेम
विनय:
रात है चांदनी, छायी है रागिनी,
देखो ऐसे में चुप न रहो!
लाज जी बेड़ियाँ तोड़ दो,
प्यार के ढाई आखर कहो!
आओ जीवन का श्रृंगार मिलकर करें ,
तू है मेंहदी की खुशबू, इतर मैं बनू!
मेरे सतरंगी साफे की कलगी है तू ,
और तेरे पाँव का मैं महावर बनू!
तुम संवारो मुझे, मैं सजाऊँ तुम्हें,
बस यू ही सज संवर कर रहो!
लाज की बेड़ियाँ तोड़ दो,
प्यार के ढाई आखर कहो!
तुम हो होली के जैसी, हूँ मैं फाग सा,
तुम हो गीतों सी ग़ज़लों सी मैं राग सा!
तुम दीवाली सी जगमग मैं जलता दीया ,
तुम हो संसार सी मैं हूँ वैराग सा!
एक त्यौहार तुम एक त्यौहार मैं,
मेरे जीवन का उत्सव बनो!
लाज की बेड़ियाँ तोड़ दो
प्यार के ढाई आखर कहो!
नींद बनकर नयन में रहो तुम मेरे,
रक्त बनकर शिराओं में बह जाऊँ मैं!
श्वास बनकर ह्रदय में धड़कती रहो,
मुझ मे रह जाओ तुम तुम मे रह जाऊँ मैं!
मैंने जब भी लिखा सिर्फ तुम को लिखा,
मैं कलम तुम मेरे गीत हो!
लाज की बेड़ियाँ तोड़ दो,
प्यार के ढाई आखर कहो!
उत्तर:
प्रेम को ढाई आखर में गढ़ते हो क्यों,
प्रेम तुलसी है मीरा है रसखान है!
प्रेम सीता का तप, उर्मिला का विरह,
प्रेम केवट है सबरी है प्रभु राम है!
प्रेम बलिदान है, प्रेम अभिमान है,
प्रेम की धार में, तुम बहो!
लाज की बेड़ियाँ तोड़ दो,
ढाई आखर भले न कहो!