द्रौपदी का संताप (संपूर्ण)
द्रौपदी का संताप (संपूर्ण)
चक्रव्यूह के मध्य वो अकेला ही खड़ा था
शूरवीर जो शत्रुओं से खूब लड़ा था,
वही था जो कौरवों की राह में अड़ा था,
शौर्य जिसका सारे वीरों के सर चढ़ा था।
पग जिसने रणभूमि में अंगद सा जड़ा था,
आज उसका पुत्र वो यूं गोद में पड़ा था,
हर अस्त्र जो पुत्र के शरीर में जितना गड़ा था,
मां के वक्ष पर घाव उसका उतना ही बड़ा था।
पांचाली यज्ञसेनी कृष्णा जो ज्वाला ने जनी थी,
काया उसकी विकट पुत्र शोक से अनमनी थी,
महाभारत है विधाता रचित, वो तो होनी थी,
फिर क्यों बनी मैं निमित्त, ये चाल घिनौनी थी।
पर द्रोपदी अब और मौन ना रहेगी,
चुपचाप सब कुछ अब वो ना सहेगी,
अश्रुधार चक्षुओं से अब यूं ना बहेगी,
संताप सारा अनवरत वो संसार से कहेगी।
मैंने तो बस अर्जुन को ही वर चुना था,
बोलो माता क्यों मुझे पांचों संग बुना था,
बांट दो बराबर मैंने बस इतना सुना था,
कह दो वह सच भी जो मुझे अनसुना था।
बोलो कृष्ण आज द्रौपदी मांगती जवाब,
अपने सारे कष्टों का कर रही वो हिसाब,
क्यों कौरवों की सभा तब सारी मौन थी,
उन्हें भी था पता कि मैं उनकी कौन थी।
हो रहे थे नग्न वो या मैं नग्न हो रही थी,
बता दो सखा तुम्ही मैं तो मग्न रो रही थी,
ना मुझे सुध काय की ना वेश की हो रही थी,
मैं तो मन में बीज इस पुत्र का बो रही थी।
हे धर्मराज आज मुझ को यह बता दो,
मैं हूं अर्धांगिनी या वस्तु यह भी जता दो,
क्या अधिकार था तुम मुझे द्यूत में चढ़ा दो,
वस्तुओं संग विनमय के लिए आगे बढ़ा दो।
हे महाबली कह दो कि वो पुत्र तुम्हारा नहीं,
क्या पिता कहकर उसने तुम्हें पुकारा नहीं,
क्यों छोड़ा मेरे पुत्र को चक्रव्यूह में वहीं
क्या तुम्हारी वीरता ने तुम्हें धिक्कारा नहीं।
हे पार्थ कहां था तब तुम्हारा प्रताप,
द्रौपदी कर रही थी जब करुण विलाप,
सुन दुशासन का वह अनर्गल प्रलाप,
बोलो कहां थे हे आर्य शूरवीर आप।
बोलो माद्री कुमार क्यों किया नहीं प्रयास
अरि जब बना रहा था उसे काल का ग्रास
क्यों मूक थे सुन कर वो कुटिल अट्टहास
अरे कुछ कर लेते तुम दोनों भ्राता काश।
देख उत्तरा को मन द्रौपदी का भर आया था,
क्या यही थी वो जिसको पुत्र वर के लाया था,
क्लांत मलिन हो मुख कमल वो कुम्हलाया था,
आज कैसा अमंगल दुर्दिन उस पर छाया था।
सुहागन जो अभी ही चढ़कर आई थी डोली,
अपना दुख अंतस में रख वो उत्तरा ये बोली,
सुन उसकी वाणी उस सिंही ने आंखें खोली,
याद आती थी पुत्र की वो हर हंसी ठिठोली।
मां क्रंदन से तुम्हारे यह संसार डोलते हैं,
आहत हैं सभी पर दुख से ना बोलते हैं,
पुत्र जो गोद में है देखो तो वो मरा नहीं,
शूरवीर ना कोई जो रण में उससे डरा नहीं।
वीर कितने ही रणचंडी को शीश चढ़ाने आते हैं,
पर ऐसी वीरगति विरले भाग्यशाली ही पाते हैं,
अपने रुदन से मां वीर का ना अपमान करो,
शीश नवा कर सब उस धीर को प्रणाम करो।
बड़प्पन कैसा उत्तरा की बातों में था अब छाया,
सुन ये वचन द्रौपदी का वात्सल्य घट भर आया,
संताप त्याग शांत हुई विह्वल थी जो महामाया,
आगे बढ़कर उसने भी वीर पुत्र को शीश नवाया।
शांत थी द्रौपदी पर उसके शब्द गूंजते थे,
हर किसी से अनुत्तरित प्रश्न वो पूछते थे,
कुछ आज कहा था कुछ फिर वो कहेगी,
कथा ये संताप की सदियों जीवंत रहेगी।