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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -१८०; सगर चरित्र

श्रीमद्भागवत -१८०; सगर चरित्र

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श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित 

रोहित के पुत्र हरित थे 

चम्प थे हरित के पुत्र 

चम्पापुरी बसाई थी उन्होंने। 


चम्प के सुदेव पुत्र हुआ 

उसका पुत्र विनय नाम का 

विनय का भरूक, भरूक़ का वृक 

वृक का पुत्र बाहक था। 


शत्रुओं ने बाहक से राज्य छीन लिया 

वन में चला गया वो लेकर पत्नी को 

बुढ़ापे के कारण जब मृत्यु हुई उसकी 

उद्यत हुई पत्नी सती होने को। 


परन्तु मालूम था महर्षि और्व को 

कि इसकी पत्नी है गर्भ से 

रोक दिया था इसीलिए 

उनकी पत्नी को सती होने से। 


जब उसकी सौतों को पता चला 

उन्होंने विष दिया उसे भोजन में 

परन्तु विष का प्रभाव न हुआ गर्भ पर 

बालक का जन्म हुआ विष को लिए हुए। 


गर ( विष ) के साथ पैदा हुए थे 

सगर कहलाये इसीलिए 

सगर बड़े यशश्वी राजा हुए 

पृथ्वी को खोदा था उन्हीं के पुत्रों ने। 


आज्ञा मान गुरुदेव और्व की 

तालजंघ, यवन, शक आदि जाती के लोगों का 

वध नहीं किया था उन्होंने 

बल्कि उन्हें विरूप बना दिया। 


कुछ के सिर मुंडवा दिए 

मूंछ दाढ़ी रखवाई कुछ के 

कुछ को खुले वालों वाला बना दिया 

आधे सिर मुंडवा दिए थे कुछ के। 


कुछ लोगों को आज्ञा दी कि 

वस्त्र औढें बस, पहनें नहीं 

कुछ को कहा बस लंगोटी पहनें 

औढें नहीं और वो कुछ भी। 


इसके बाद राजा सगर ने 

उपदेशानुसार और्व ऋषि के 

अशव्मेघ यज्ञ के द्वारा 

आराधना की प्रभु की उन्होंने। 


उनके यज्ञ में जो घोडा छोड़ा गया 

चुरा लिया था उसे इंद्र ने 

घोड़े के लिए छान डाली पृथ्वी 

सगर और पत्नी सुमति के पुत्रों ने। 


जब घोडा न मिला उन्हें तो 

खोद डाला सारी पृथ्वी को 

खोदते खोदते दिखाई दिया उन्हें 

घोडा पास में, कपिल मुनि के। 


साठ हजार राजकुमार थे वे 

जब उन्होंने ऐसा देखा तो 

कपिल मुनि की और थे दौड़े 

शस्त्र उठा, ये कहते हुए वो। 


कहें कि यही चोर घोड़े का 

आँखें मूंदे बैठा है देखो 

यह बहुत बड़ा पापी है 

मार डालो. मार डालो इसको। 


और अपनी पलकें खोलीं थी 

उसी समय कपिल मुनि ने 

राजकुमारों की बुद्धि हर ली थी इंद्र ने 

इसलिए मुनि का वो तिरस्कार करें। 


फलस्वरूप इस तिरस्कार के 

आग जल उठी उनके शरीर में 

और जलकर खाक हो गए 

क्षणभर में ही सब के सब वे। 


यह कहना उचित नहीं है 

कि सगर के वे लड़के सारे 

जलकर भस्म हुए थे 

कपिल मुनि के क्रोध के मारे। 


वे तो सत्वगुण के परम आश्रय हैं 

उनसे भला कैसे की जा सकती 

क्रोधमय तमोगुण की संभावना 

स्वयं परमात्मा वो,परम ज्ञानी। 


सगर की दूसरी पत्नी केशिनी थी 

असमंजस ने जन्म लिया उसके गर्भ से 

परन्तु पुनर्जन्म का स्मरण 

अब भी बना हुआ था उन्हें। 


इसलिए ऐसा काम किया करते 

जिससे भाई बंधू उन्हें प्रिय न समझें 

कार्य करते अत्यंत निन्दित कभी 

पागल सा अपने को दिखलाते। 


यहाँ तक की बच्चों को उठाकर 

सरयू में डाल देते वो 

इस प्रकार के कार्य करके 

उद्दिग्न कर दिया था लोगों को। 


अंत में ऐसी करतूत देखकर 

पिता ने असमंजस को त्याग दिया 

तदनन्तर असमंजस ने योगबल से अपने 

सभी बालकों को जीवित कर दिया। 


अपने पिता को दिखाकर उनको 

वो तब थे वन में चले गए 

अयोध्या के नागरिकों ने जब देखा 

हमारे बालक तो आ गए लौट के। 


तब उन्हें असीम आश्चर्य हुआ 

बड़ा पश्चाताप हुआ सगर को 

असमंजस पुत्र अंशुमान को सगर ने 

ढूंढने भेजा था यज्ञ के घोड़े को। 


अपने चाचाओं के द्वारा खोदे हुए 

समुन्द्र किनारे किनारे चलकर ही 

घोड़े को देखा था उन्होंने 

चाचाओं के शरीर की भस्म के पास ही। 


वहीँ भगवान् कपिल मुनि बैठे 

प्रणाम किया उनके चरणों में 

अंशुमान हाथ जोड़ फिर 

कपिल मुनि की स्तुति करने लगे। 


अंशुमान ने कहा, हे भगवन 

आप ब्रह्मा जी से भी परे हैं 

वो प्रत्यक्ष देख पाते न आपको 

आजतक समझे भी नहीं हैं। 


तब अज्ञानी हम लोग, आपको 

प्रभु, समझ सकते हैं कैसे 

बहिर्मुख हम, देख न सकें 

जो स्थित हैं आप, ह्रदय में। 


एकरस, ज्ञानधन आप हैं 

माया के गुणों में भूला हुआ मैं सब 

मूढ़ प्राणी, चिंतन आपका 

किस प्रकार मैं करूं अब। 


शरीर धारण किया ये आपने 

उपदेश देने के लिए ज्ञान का 

नमस्कार करते हैं आपको 

आपकी करें चरण वंदना। 


शुकदेव जी कहें, हे परीक्षित 

इस प्रकार जब अंशुमान ने 

मुनि के प्रभाव का गान किया 

मन ही मन अनुग्रह किया उन्होंने। 


भगवान् कपिल ने कहा, बेटा ये घोडा 

यज्ञ पशु है पितामह का तुम्हारे 

अपने पितामह को दे दो इसको 

ले जाओ इसको यहाँ से। 


तुम्हारे चाचा जो भस्म हो गए 

उद्धार उनका अब जिससे होगा 

वो बस एक गंगाजल है 

और कोई उपाय न इसका। 


नम्रता से प्रसन्न कर मुनि को 

अंशुमान ने परिक्रमा की उनकी 

तज्ञ पशु को ले आये और उससे 

सगर ने समाप्ति की यज्ञ की। 


राजा सगर ने तब अंशुमान को 

राज्य का सब भर सौंप दिया 

महर्षि और्व के बतलाये मार्ग से                 

परमपद प्राप्त कर लिया। 


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