Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Ajay Singla

Classics

4  

Ajay Singla

Classics

श्रीमद्भागवत - १२० ; दक्ष प्रजापति की साठ कन्याओं के वंश का वर्णन

श्रीमद्भागवत - १२० ; दक्ष प्रजापति की साठ कन्याओं के वंश का वर्णन

3 mins
489


शुकदेव जी कहें, हे परीक्षित

विनय करने पर ब्रह्मा जी के

साठ कन्याएं उत्पन्न कीं

पत्नी असिक्नी से दक्ष ने।


वो सभी कन्याएं जो थीं

बहुत प्रेम करतीं थीं दक्ष से

उनमें से दस ब्याह दीं धर्म को

तेरह ब्याह दीं ऋषि कश्यप से।


सताईस चन्द्रमाँ को ब्याह दीं

दो भूत को, दो अंगिरा को

दो कृशाशव को ब्याह दीं

चार ताक्षर्यनामधारी कश्यप को।


वंश परम्परा है इन्हीं की

फैली हुई तीनों लोकों में

अब मैं वर्णन करूंगा

वंश का इनके, विस्तार से।


धर्म की दस पत्नियां थीं

भानु, जामि, ककुभ, लम्बा 

विशवा, साध्या, मरुत्वती 

वसु, महूर्ता और संकल्पा। 


उन सब से उत्पन्न हुए

बहुत से अभिमानी देवता

वसु से आठों वसु, प्रभास वसु से 

विशवकर्मा का जन्म हुआ।


भूत की पत्नी सरूपा ने

कोटि कोटि रुद्रगण उत्पन्न किये

जिनकी संख्या बहुत ज्यादा थी

ग्यारह मुख्य हैं पर उनमें।


भूत की दूसरी पत्नी भूता से

भयंकर भूत, विनायकादि जन्मे

पितृगण को उत्पन्न किया

अंगिरा की पहली पत्नी स्वधा ने।


अंगिरा की दूसरी पत्नी सती थीं

स्वीकार कर लिया उन्होंने

अथर्वागिरस नामक वेद को

ही अपने पुत्र रूप में।


धूम्रकेश का जन्म हुआ था

कृशाशव की पत्नी अर्चि से

और चार पुत्र हुए थे

दूसरी पत्नी घिषणा से।


ताक्षर्यनामधारी दक्ष की चार स्त्रियां

कद्रू, पतंगी, यामिनी और विनता 

यामिनी से पतिंगों का जन्म हुआ

पतिंगा से हुआ पक्षिओं का।


विन्ता के पुत्र गरुड़ हुए

जो भगवन के वाहन हैं

विंन्ता के दूसरे पुत्र जो

सूर्य के सारथि अरुण हैं।


कद्रु से अनेकों नाग उत्पन्न हुए

सताइस पत्नियन हैं चंद्रमा की

नक्षत्राभिमानी देवियां सब 

हे परीक्षित, ये कृतिका आदि।


रोहिणी से विशेष प्रेम करें चंद्रमा

इसीलिए श्राप दिया दक्ष ने 

जिससे उन्हें क्षय रोग हो गया

कोई संतान नहीं हुई उन्हें।


प्रसन्न करके फिर से दक्ष को

कृष्ण पक्ष की क्षीण कलाओं को

शुक्ल पक्ष में पूर्ण होने का

प्राप्त कर लिया था वर तो।


परन्तु फिर भी नक्षत्राभिमानी देविओं से

संतान न हुई कोई उनके

अब कहूँ कश्यप पत्निओं के बारे में

जिन्हें लोकमताएँ हम कहते।


सारी सृष्टि उन्हीं से उत्पन्न हुई

नाम अदिति, दित्ती, दनु, काष्ठा

सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा

सुरभि, शर्मा,तिमि, अरिष्टा।


तिमि के पुत्र जलचर जंतु हैं

बाघादि जीव हैं सरमा के

भैस, गाय आदि दो खुर वाले पशु

पुत्र हैं वो सुरभि के।


बाज, गिद्ध आदि शिकारी पक्षी

ये सब संतान हैं ताम्रा की

मुनि से अप्सराएं उत्पन्न हुईं

क्रोधवशा से सांप, बिच्छु आदि।


इला से वृक्ष, लता आदि उत्पन्न हुए

सुरसा से राक्षस उत्पन्न हुए

अरिष्टा से गन्धर्व हुए और

एक खुर वाले घोड़े आदि काष्ठा से।


दनु से इकसठ पुत्र हुए

स्वर्भानु,, वृषपर्वा, विप्रचिति, दुर्जय

शम्बर, हयग्रीव, कपिल, अरुण

और धूम्रकेश प्रधान प्रधान हैं।


स्वर्भानु की कन्या सुप्रभा का

विवाह हुआ था नमुचि से

नहुषनन्दन ययाति से विवाह किया

वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा ने।


दतु के पुत्र वैशवानर की

सुंदरी कन्याएं चार थीं

नाम थे उनके हयशिरा, पुलोमा 

कालका और उपदानवी।


उपदानवी के साथ हिरण्याक्ष का

हयशिरा के साथ क्रतु का विवाह हुआ

पुलोमा और कालका के साथ में

ब्रह्मा की आज्ञा से कश्यप ने विवाह किया।


उनके पुलोम और कालकीय नामक

साथ हजार रणवीर दानव हुए

इन्हीं का निवातकवच है

अजुन के हाथों से वो मारे गए।


यज्ञ कर्म में विघ्न डालते

इसीलिए उनको मारा अर्जुन ने

अकेले ही सब को मार दिया था

प्रसन्न इंद्र को करने के लिए।


विप्रचिति की पत्नी सिंहिका ने

एक सौ एक पुत्र उत्पन्न किये

उनमें सबसे बड़ा राहु ग्रह है

शेष सौ पुत्र केतु हुए।


वंशपरम्परा आदिति की

हे परीक्षित अब सुनाऊँ मैं तुम्हें

वामन रूप में अवतार लिया था

भगवान नारायण ने इस वंश में।


अदिति के बारह पुत्र थे

नाम विवस्वान, अयर्मा, पूषा, त्वष्टा

सविता, भग, धाता, विधाता

वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम था


यही बारह आदित्य कहलाये

भगवान वामन हैं त्रिविक्रम ही

श्राद्धदेव मनु और यम यमी का जोड़ा हुआ

संज्ञा से जो विवस्वान की पत्नी।


संज्ञा ने घोड़ी का रूप धर

भगवान सूर्य द्वारा उन्होंने 

दोनों अश्वनीकुमारों को

जन्म दिया था भूलोक में।


छाया दूसरी पत्नी विवस्वान की

उनके दो पुत्र, एक कन्या हुई

शनैशचर और सावर्णि मनु पुत्र 

कन्या का नाम था तपती।


तपती ने वर्ण किया संवरण को

अर्यमा की पत्नी मातृका से

चर्षणी नामक पुत्र हुए जो

कर्तव्य-अकर्तव्य के ज्ञान से युक्त थे।


बह्मा जी ने उन्हीं के आधार पर 

मनुष्य जातिओं की कल्पना की

पूसा पर शिव क्रोधित हुए थे

उनके कोई संतान नहीं थी।


प्राचीन काल में दक्ष पर शिवजी

जब क्रोधित हुए, पूसा वहीं थे

दांत दिखाकर हंसने लगे थे

वीरभद्र ने तोड़े थे दांत इसीलिए।


त्वष्टा की पत्नी थी रचना

दैत्यों की छोटी बहन वो

सनिवंश और प्राक्रमी विश्वरूप

रचना के गर्भ से पुत्र हुए दो।


विश्वरूप यद्यपि शत्रुओं के भांजे थे

पुरोहित बनाया फिर भी देवताओं ने

परित्याग किया जब देवताओं का

इंद्र से अपमानित हो वृहस्पति ने।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics