ग़ज़ल
ग़ज़ल
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न शिकवा ये करना पुकारा नहीं है
पलटना तुम्हीं को गँवारा नहीं है।
बहुत बार तोड़ा बहुत बार जोड़ा
सुनो दिल मेरा ये बैचारा नहीं है।
किसे अब पुकारे नहीं कोई अपना
खुदा के सिवा अब सहारा नहीं है।
नहीं यूँ तको तुम निगाहों को मेरी
अभी दर्द मैंने बुहारा नहीं है।
वो पत्थर है फिर भी करूँ गुफ्तगू मैं
मुकद्दर से दिल अब भी हारा नहीं है।
तू रुसवा करे फिर भी चूमे तेरा दर
मेरा इश्क इतना नकारा नहीं है।