रामायण ६९ ;लव कुश कथा
रामायण ६९ ;लव कुश कथा
घोड़ा दक्षिण दिशा में चला
सेना चले वो चले जहाँ
पहुंचे वो थे घने एक वन में
बाल्मीकि आश्रम वहां।
दो बालक पराक्रमी वहां थे
सीता के वो पुत्र थे
घोड़े को देखा, रोक लिया उसे
पढ़ें सिर पर लिखा पत्र थें |
घोड़े को एक पेड़ से बांधा
धनुष लेकर तैयार हुए
सेना देखे, दो बालक हैं
घोड़े को वो हैं बाँध लिए।
सेना कहे तुम छोटे बालक
घर जाओ तुम, घोडा देकर
लव कुश ने ललकारा उन्हें तो
गुस्से से सेना गयी थी भर।
युद्ध फिर शुरू हो गया
मारें शत्रु को, जो भी आये
लव और कुश हैं बहुत बहादुर
शत्रुघ्न को सेना बतलाये।
दो मुनि बालकों ने है रोका
युद्ध का घोड़ा, और उसे बांधा
शत्रुघ्न क्रोध करें, कहें
कौन है वो जो मरना चाहता।
देखकर सुंदर मुनि बालकों को कहें
तुम हो बालक, घोडा दे दो
बालक कहें तुम कौन हो
युद्ध करो, घोडा ले लो।
लव कुश और शत्रुघ्न में तब
युद्ध बहुत हुआ भारी
शत्रुघ्न जब मूर्छित हो गए
सेना राम के पास पधारी।
राम ने लक्ष्मण को भेजा कहा
मुनिबालकों को बाँध लाओ
पर मत मारना उन दोनों को
सेना तुम सारी ले जाओ।
समझाने से ना माने दोनों
लक्ष्मण को क्रुद्ध कर दिया
कुश ने मोहन बाण मार कर
लक्ष्मण को बेसुध कर दिया।
सेना फिर अयोध्या थी पहुंची
कहें राम से दोनों महान हैं
बालक वो छोटी अवस्था के
दिखें बिलकुल आपके समान हैं।
राम ने तब भेजा भरत को
साथ में अंगद को भी भेजा।
जामब्बान, सुग्रीव, विभीषण
कहा, हनुमान को भी तू ले जा।
हनुमान पहुंचे , समझाया
कहें धन्य तुम्हारी माता
कहें अब तुम घर को जाओ
पर मानें न दोनों भ्राता।
भयंकर युद्ध करें वो दोनों
जीत लिया अंगद को, नल को
भरत जी को भी मूर्छित कर दिया
व्याकुल किया सारी सेना को।
दूत लौटकर आये अवधपुरी
राम ने सेना को सजाया
पहुँच गए वो युद्ध भूमि में
दोनों को अपने पास बुलाया।
कहें नाम क्या माता पिता का
युद्ध में वीरों को तुमने जीता
वो कहें राम को, युद्धभूमि में
बात करना है कायरता।
युद्ध करो तुम हमसे अब
राम कहें तुम वंश बताओ
कोमल शरीर, न चलाऊं बाण मैं
अपनी तुम पहचान बताओ।
तब दोनों बालक थे बोले
सीता नाम, हमारी माता का
जनक जी की वो पुत्री हैं
कुश और लव दोनों भ्राता का।
वाल्मीकि ने पालन किया है
हम न जानें पिता का वंश क्या
जाम्ब्बान विभीषण आये वहां
बाण मार के दिया हरा।
घोड़े के पास बाँधा हनुमान को
रामचंद्र के पास चले वो
राम सो रहे, हनुमान को ले
घोड़े के साथ आश्रम चले वो।
सीता के पास जब पहुंचे वो
हनुमान को वो पहचान गयीं
किस्से युद्ध वो करके आये
ये सब भी वो जान गयीं।
व्याकुल हुईं बहुत थीं जानकर
बाल्मीकि तब आये वहां
धीरज दें वो सीता को
और उन्हें समझायें वहां।
लव कुश को वो साथ में लेकर
युद्धभूमि में पहुँच गए
लव कुश को आगे किया
कहें राम से, हैं पुत्र खड़े।
मुनि को ह्रदय से लगाया
मुनि ने सब वृतांत कहा
कैसे जन्म हुआ लव कुश का
लक्ष्मण ने छोड़ा जहाँ।
राम मिले दोनों पुत्रों को
लक्ष्मण सीता के पास गए
समझाएं वो सीता जी को पर
उनके मन में कुछ और रहे।
तभी शेष आये धरती पर
एक सिंहासन साथ लिए
सीता जी को लेकर वो
पातळ लोक में चले गए।
लक्ष्मण जी की आँख में आंसू
ये समझ गए थे राम भी तब
सीता तो धरती की बेटी
अपने लोक वो जाएं अब।
पुत्रों सहित नगर को आये
अशवमेघ पूरा किया
गुरु, देवताओं की पूजा की
ब्राह्मणों को था दान दिया।