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Ratna Pandey

Classics

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Ratna Pandey

Classics

फँस गई गीता मायाजाल में

फँस गई गीता मायाजाल में

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न्याय की अदालत में लगाई जाती है

गुनहगारों को पुकार,

खड़ा कर कटघरे में दिलवाई जाती है गीता की कसम हर बार।


मत करो अपमान पवित्र गीता का यहाँ,

ना जाने कितने झूठ का पाप ढ़ो रही है वह, सिसक सिसक कर रो रही है वह।


सच की आड़ में ना जाने कितने झूठ उसके पृष्ठों में बंद होंगे,

झूठी गवाही से फाँसी के फंदे

पन्नों में अटक गए होंगे।

नहीं गीता लिखी गई थी कि कोई उस पर

हाथ रख सच को निगल जाए,

और झूठ साबित कर किसी निर्दोष को

दोषी करार दे जाए।


सच झूठ की इस अदालत में गीता

लाचार लगती है,

छुड़ाना चाहती है दामनपर सच झूठ के समन्दर में

डूबती सी लगती है।

नहीं उम्मीद है बचने की

गुहार लगा रही है कान्हा से,

कि हे कान्हा दो मुझे शक्ति इतनी

कि गर कोई झूठ बोले तो

हाथ उनके मुझ तक ना पहुँच पाएँ,

जिह्वा कुछ कह ना पाए।


नहीं चाहती मैं अपने पृष्ठों पर दाग लगाना,

किसी निर्दोष को सूली पर चढ़ाना।

यहाँ बैठी न्याय की देवी तो अंधी है,

न्याय की कुर्सी यहाँ स्वार्थ और

लालच के दलदल में फँसी है,

सच्चाई की यहाँ भला किसको पड़ी है।

नहीं आए अगर कान्हा

मैं अंदर ही अंदर घुट जाऊँगी,

किसी दिन दम तोड़ जाऊँगी।


सुनाई देती हैं मुझे चीखें

कभी नादान बचपन की,

कभी अल्हड़ जवानी की, कभी माँ के आँचल से लिपटी

दूध पीती नन्हीं सी रानी की,

लाचार और बेबस मैं यहाँ

हर रोज़ बेची जाती हूँ, नोटों की गड्डियों से तोली जाती हूँ।


सह रही हूँ ज़ुर्म यहाँ नहीं है मेरी कोई हस्ती,

सच झूठ के इस मायाजाल से

हे कान्हा दिला दो मुझे मुक्ति।

पूछोगे अगर मुझसे

निर्दोषों को दोषी क्यों करार दिया,

मैं सफाई में अपनी कुछ ना कह पाऊँगी

शर्म से गड़ जाऊँगी।


द्वापर में द्रौपदी को बचाया था,

इस कलयुग में मुझे बचाने आ जाओ,

मुझे मोक्ष दिला जाओ,

हे कान्हा तुम आ जाओ,

हे कान्हा तुम आ जाओ।


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