श्रीमद्भागवत-२३४; केशी और भौमासुर का उद्धार तथा नारद जी के द्वारा भगवान की स्तुति
श्रीमद्भागवत-२३४; केशी और भौमासुर का उद्धार तथा नारद जी के द्वारा भगवान की स्तुति
श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित
केशी को कंस ने जब भेजा तो
घोड़े के रूप में बड़े वेग से
दौड़ता हुआ व्रज में आया वो।
उसकी भयानक हिनहिनाहट से
सब के सब भय से कांप रहे
मुँह वृक्ष के ख़ोडर समान था उसका
देखने में भी डर लगता उसे।
आँखें लाल लाल बड़ी बड़ी
शरीर भी बहुत विकराल था उसका
स्वामी कंस का हित करने को
कृष्ण को था वो मारना चाहता।
जब भगवान ने ये सब देखा
गरजकर ललकारा उसको
केशी का वेग बड़ा प्रचंड था
बड़ा बलवान दैत्य था वो।
भगवान के पास पहुँचकर उसने
दुलत्ती झाड़ी थी ज़ोर से
भगवान ने दोनो हाथों से
पिछले पैरों को पकड़ लिया उसके।
चार सौ हाथ की दूरी पर फेंक दिया
सचेत होकर फिर से झपटा वो
श्री कृष्ण ने हाथ जब मुँह में डाल दिया
घुटन होने लगी तब उसको।
अत्यन्त कोमल करकमल उस समय
तपाए हुए लोहे समान हो गया
केशी के दांत टूटकर गिर गए
भुजदंड उसके मुँह में ही बढ़ने लगा।
साँस का भी मार्ग ना रहा जब
पृथ्वी पर गिर पड़ा निश्चेष्ट हो
प्राण पंखेरू उड़ गए उसके
ककड़ी की भाँति फट गया वो।
देवता प्रसन्न हुए और
फूलों की वर्षा करने लगे
परीक्षित, नारद जी परम प्रेमी
और हितेषि समस्त जीवों के।
कंस के पास से लौटकर वो
भगवान कृष्ण के पास आ गए
एकांत में ले जाकर कृष्ण को
नारद जी ये कहने लगे।
‘ सच्चिदानन्दस्वरूप श्री कृष्ण, आप
निवास करते सबके हृदय में
सर्वशक्तिमान, सत्यसंकल्प हैं
और बड़े आनन्द की बात ये।
कि आपने खेल खेल खेल में
मार डाला केशी दैत्य को
हे प्रभो, मैं मरता देखूँगा
परसों ही अब आपके हाथों।
चानूर, मुष्टिक, दूसरे पहलवान
कुवलियापीड और स्वयं कंस को
उसके बाद शंख़ासुर, कालयवान
मुर और नरकासुर को।
कल्पवृक्ष तोड़ लाएँगे स्वर्ग से
मज़ा चखाएँगे इंद्र को
वीर कन्याओं से विवाह करेंगे
पाप से छुड़ाएँगे नृग को।
जाम्बवान से जाम्बवती और
समयंतक मनी भी ले आएँगे
ब्राह्मण के मरे हुए पुत्रों को
ला देंगे अपने धाम से।
इसके पश्चात पौंडरक, मिथ्या वासुदेव
इन दोनो का वध करेंगे
काशीपुर को जला देंगे
और युधिष्ठिर के यज्ञ में।
मारेंगे चेदिराज शिशुपाल को
लौटते समय दन्तवक़्तर को भी
द्वारका में निवास करते समय
पराक्रम प्रकट करेंगे और भी।
पृथ्वी के बड़े ज्ञानी पुरुष और
प्रतिभाशाली जो, वो ये गान गायेंगैं
पृथ्वी का भार उतारने के लिए
बनेंगे सारथी आप अर्जुन के।
अनेकों अक्षौहिणी सेना का
संहार करेंगे कालरूप से
और ये सब लीला आपकी
देखूँगा मैं अपनी आँखों से।
प्रभो,आप विशुद्ध विज्ञानधन हैं
स्थित रहते हैं परमानंद में
आप अखंड, एक रूप हैं
मैं तो हूँ आपकी शरण में।
इस समय मनुष्य रूप में
यदु, वृष्णि,सात्यक वंशियों के
आप शिरोमणि बने हुए हैं
नमस्कार करूँ इन चरणों में।
श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित जब
नारद ने स्तुति की भगवान की
रोम रोम खिल गया उनका
केवल भगवान के दर्शन से ही।
एक बार गवलबाल सब
पशुओं को चरा रहे थे
छिपने छिपाने का खेल खेल रहे
कुछ रक्षक कुछ चोर बने थे।
कुछ उनमें से भेड़ भी बने
उसी समय व्योमासुर वहाँ आया
ग्वाल का वेश धरकर आया था
उनमें घुसकर वहीं खेलने लगा।
मयासुर का पुत्र था वो
स्वयं भी बड़ा मायावी वो
खेल में वह था चोर ही बना
चुराकर ले जाता गवालबालों को।
पहाड़ की गुफा में डाल देता उन्हें
दरवाज़ा ढक देता चट्टान से
इस प्रकार ग़वालबाल वे
केवल चार पाँच बचे रहे।
भगवान उसकी करतूत जान गए
गवालबालों को जब लेकर जा रहा
भगवान ने उसे धर दबोचा
हालाँकि व्योमासुर बहुत बली था।
अपने असली रूप में आ गया
पहाड़ के समान लगता वो
परन्तु अपने को ना छुड़ा सका
भगवान के शिकंजे से वो।
गला घोंटकर मार डाला उसे
ये तो थी लीला भगवान की
गवालबालों को निकाल लिया था
चट्टान तोड़ गुफा के द्वार की।