श्रीमद्भागवत -१४१ ;नृसिंह भगवन का प्रादुर्भाव, हिरण्यकशिपु का वध
श्रीमद्भागवत -१४१ ;नृसिंह भगवन का प्रादुर्भाव, हिरण्यकशिपु का वध
श्रीमद्भागवत -१४१ ;नृसिंह भगवन का प्रादुर्भाव,
हिरण्यकशिपु का वध एवं ब्रह्मादि देवताओं द्वारा भगवान की स्तुति
नारद जी कहें कि प्रह्लाद जी का
प्रवचन सुनकर दैत्य बालकों ने
निर्दोष होने के कारण ही
बात पकड़ ली उनकी उसी समय।
गुरु जी की दूषित शिक्षा पर
ध्यान न फिर दिया उन्होंने
गुरु जी ने देखा तो घबराये वो
हिरण्यकशिपु के पास वे गए।
अनीति को सुन प्रह्लाद की
तब निश्चय किया हिरण्यकशिपु ने
मार डालना चाहिए अब तो
प्रह्लाद को अपने हाथों से।
प्रह्लाद, हिरण्यकशिपु के सामने खड़े
हाथ जोड़ बड़ी नम्रता से
तिरस्कार के अयोग्य थे प्रह्लाद पर
क्रूर था हिरण्यकशिपु स्वाभाव से।
कठोर वाणी में डांटते हुए कहा
मूर्ख, उदण्ड हो गया तू बड़ा
स्वयं तो तू नीच है ही
बालकों को भी गलत शिक्षा देता।
बड़ी ढिठाई से तुमने तो
उल्लंघन किया आज्ञा का मेरी
इसका फल चखाता हूँ तुम्हें
यमराज के घर पहुंचाता हूँ आज ही।
मैं तनिक भी क्रोध करूं तो
तीनों लोक, लोकपाल कांपते
मेरी आज्ञा के विरुद्ध काम किया
बता फिर तूने किसके बूते।
प्रह्लाद जी ने कहा, दैत्यराज !
ब्रह्मा से लेकर सब छोटे बड़े
चर अचर जीवों को भगवान ने
कर रखा है अपने वश में।
न केवल मेरे और आपके
बल्कि समस्त बलवानों का संसार के
बल भी केवल वही हैं
सर्वशक्तिमान प्रभु काल वे।
आसुरभाव अपना छोड़कर
समान बनाइये मन को सबके प्रति
कुमार्गगामी मन के अतिरिक्त
शत्रु नहीं है और कोई।
मन में सब के प्रति समान भाव ही
सबसे बड़ी पूजा भगवान की
हिरण्यकशिपु कहे, हे मंदबुद्धि अब
बहकाने की तुम्हारे हद हो गयी।
यह बात स्पष्ट है अब
कि मरना चाहता है अब तू
मेरे सिवा स्वामी जो बतलाया तूने
तेरा जगदीश्वर कहाँ है, देखूं।
तूने कहा वो सर्वत्र हैं
तो दिखता नहीं क्यों इस खम्भे में
अच्छा, तेरे कहने का मतलब
इसमें भी वो दिखाई दे !
अभी तेरा सर धड़ से अलग करूं
देखता हूँ वह सर्वत्र हरि
जिसपर तुम्हें इतना भरोसा है
कैसे रक्षा करता है तेरी।
क्रोध में और खड्ग ले हाथ में
सिंहासन से कूद पड़ा वो
बड़े जोश से हिरण्यकशिपु ने
खम्भे को घुसा मारा जो।
उसी समय भयंकर शब्द हुआ
ऐसा लगा ब्रह्माण्ड फूट गया
ध्वनि लोकपालों तक पहुंची
ऐसा जान पड़ा, प्रलय हो रहा।
बड़े जोर से झपटा था हिरण्यकशिपु
मारने के लिए प्रह्लाद को
परन्तु उस घोर शब्द को सुनकर
घबराया इधर उधर देखे वो।
सोचे कि शब्द ये कौन कर रहा
परन्तु दिखाई दिया न कुछ भी
उसी समय सेवक प्रह्लाद की
और सच करने वाणी ब्रह्मा की।
और समस्त पदार्थों में अपनी
व्यापकता दिखने के लिए
विचित्र रूप धारण करके वहां
उसी खम्भे से भगवान प्रकट हुए।
न तो पूरा पूरा सिंह का
न मनुष्य का रूप ही था वो
नृसिंह के रूप में क्या जीव ये
हिरण्यकशिपु देखे उसको विस्मित हो।
हिरण्यकशिपु के सामने खड़े हो गए
नृसिंह भगवन भयानक रूप में
हिरण्यकशिपु था ये सोच रहा कि
ढोंग रचा ये मायावी विष्णु ने।
हाथ में गदा लेकर और
सिंहनाद करता हुआ वो
टूट पड़ा नृसिंह भगवान पर
मारे वो गदा से उनको।
गदा सहित पकड़ा भगवान ने
लोकपाल सब युद्ध देख रहे
छूट कर नृसिंह की पकड़ से
हिरण्यकशिपु युद्ध करे तलवार से।
भगवान ने तब ऊँचे स्वर में
भयंकर अट्टहास किया था
हिरण्यकशिपु की आँखें बंद हो गयीं
भगवान ने फिर उसे पकड़ लिया था।
गिरा लिया जाँघों पर अपनी
दरवाजे पर ले जाकर उसे
फाड़ डाला उसके शरीर को
खेल खेल में अपने नखों से।
मुंह और गर्दन लाल हो गए
खून के छींटे जब पड़े थे
कलेजा फाड़ जमीन पर पटक दिया
हिरण्यकशिपु का नखों से उन्होंने।
नेत्रों की ज्वाला से उनकी
फीका पड़ गया तेज सूर्य का
पैरों की धमक से भूकंप आ गया
स्वर्ग भी था डगमगाने लगा।
वेग से पर्वत उड़ने लगे
दिखना बंद हो गया तेज से
कोई भी दिखाई न पड़ता था
जो नृसिंह का सामना कर सके।
क्रोध उनका था बढ़ता जा रहा
विराजे सिंहासन पर वो सभा में
किसी का भी साहस न हुआ कि
पास जाकर उनकी सेवा करे।
हिरण्यकशिपु के मरने पर देवता
ढोल नगाड़े बजाने लगे थे
अप्सराएं नाचने लगीं
गन्धर्व भी गाने लगे थे।
ब्रह्मा, इंद्र, सनकादि और
सिद्ध, विद्याधर पास आये सभी
अत्यंत तेजस्वी नृसिंह भगवन की
स्तुति करने लगे दूर से ही।
ब्रह्मा जी कहें, आप अनंत हैं
कोई पार नहीं आप की शक्ति का
स्वयं निर्विकार रहते हैं
नमस्कार मैं आपको करता।
इंद्र कहे, आपके क्रोध का समय तो
अंत में होता है कल्प के
दैत्य जो मारा, उसका पुत्र जो
शरण में है, रक्षा कीजिये।
इंद्र कहे कि हे परमेश्वर
हमारी रक्षा की है आपने
हृदय को हमारे प्रफुल्लित किया
निवासस्थान है आपका ये।
ऋषियों, पितरों, सिद्धों, विद्याधरों
नागों, गंधर्वों, चारणों, यक्षों ने
सबने फिर स्तुति करके कहा
उपकार किया हमारे ऊपर ये।