STORYMIRROR

Shikha Pari

Classics

3  

Shikha Pari

Classics

पहचान

पहचान

1 min
269

आदमी की पहचान जहां

इंसान होने से नहीं होती है


आदमी की पहचान यहां

हिंदू मुसलमान होने से होती है


किसी को क्या फर्क पड़ता है

तुम कल हो या ना हो तुम्हारी तो

पहचान यहां तुम्हारी नस्ल से होनी है


जब एक हो जाओ तो जीने का सोच लेना

यहां जीने के लिए डर डर के चलना पड़ता है


यह मुल्क मेरा भी है,

ये मुल्क तेरा भी है हम इंसानों की क्या औकात

यहाँ पहचान तो ज़मीन से होती है


ये शहर मेरा न तेरा,

ये रास्ते न तेरे न मेरे हम तो राहगीर हैं

जान तो किसी और के हाथों में होती है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics