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Shikha Pari

Classics

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Shikha Pari

Classics

पहचान

पहचान

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आदमी की पहचान जहां

इंसान होने से नहीं होती है


आदमी की पहचान यहां

हिंदू मुसलमान होने से होती है


किसी को क्या फर्क पड़ता है

तुम कल हो या ना हो तुम्हारी तो

पहचान यहां तुम्हारी नस्ल से होनी है


जब एक हो जाओ तो जीने का सोच लेना

यहां जीने के लिए डर डर के चलना पड़ता है


यह मुल्क मेरा भी है,

ये मुल्क तेरा भी है हम इंसानों की क्या औकात

यहाँ पहचान तो ज़मीन से होती है


ये शहर मेरा न तेरा,

ये रास्ते न तेरे न मेरे हम तो राहगीर हैं

जान तो किसी और के हाथों में होती है।


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