मर्द हो तुम
मर्द हो तुम
ज़िन्दगी की सर्दी की तरह सर्द हो तुम
हाँ मर्द हो तुम
चोट तुम्हें भी लगती है
दर्द तुम्हें भी होता है
हम आँसू बहा के दम लेते हैं
तुम आँसू सुखा के चुप हो जाते हो
काँपते तुम भी हो जब बहन को विदा करते हो
वो आँसू बहा देती है तुम पी के मुस्कुराते हो
पिता की नाज़ हो तुम
सुनके सीना चौड़ा तो करते हो
चुपके चुपके तुम भी अंदर से डरते हो
माँ का ख्याल भी रखते,पिता की चिंता भी करते हो
जब घर से दूर होते हो तो
सबकी निगाहें से हो कर गुज़रते हो
ज़िन्दगी की सर्दी की तरह सर्द हो तुम
हाँ मर्द हो तुम
तुम्हारे भीतर ही भीतर
पल रहा होता एक तूफान है
एक बोझ के तले दब जाते हो
जब माँ बाप कहते लड़का हमारी शान है
उसे भी चिंता होती है माँ बाप की
उसे भी चिंता होती है हर एक ख्वाब की
ज़िन्दगी की सर्दी की तरह सर्द हो तुम
हाँ मर्द हो तुम।