Shikha Pari

Tragedy

4  

Shikha Pari

Tragedy

किसी की पत्नी थी

किसी की पत्नी थी

1 min
261


खामोश सी नज़रें थी

आँखों के डर से बचती थी

कौन थी नहीं जानती थी 

किसी की पत्नी थी

बस खुद को इतना ही पहचानती थी

खोयी सी वो रहती थी

वो हस्ती उसकी मिटी हुई थी

जाने वो क्या थी क्या हो गई थी

कौन थी नहीं जानती थी 

किसी की पत्नी थी

बस खुद को इतना ही पहचानती थी

चूल्हा चौका ही उसकी दुनिया थी

धुँए में चेहरे को ढूँढती थी

स्वाद में खुद को खोजती थी

जाने क्या वो सोचती थी

रोटी कच्ची थी पहले उसे सेकती थी

किसी की पत्नी थी

बस खुद को इतना ही पहचानती थी

ख्वाबों के पँखों को अब घर में कैद करती थी

दिवारों के अलग अलग रंगों में दुनिया पहचानती थी 

और अब अपने बच्चों में वो ढूँढती अपने ख्वाबों को 

कोई न जाने कितने सपने उसने चूल्हे में तोड़े 

अब कुछ नहीं पहचानती थी

किसी की पत्नी थी

बस खुद को इतना ही पहचानती थी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy