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प्रेमी की यादें

प्रेमी की यादें

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प्रेमी से हज़ार वादे करके

पति से निभाती है

उसके दिए हुए तोहफ़े,

अलमारियों में दबाती है


दिये हुए खतों को सीने से लगाती है,

फिर धीरे से नम आँखों से 

दरवाजे पे सर टिकाती है


प्रेमी के पसंद के रंग अपनाती है

बार बार चेहरा शीशे में देखती है

पति के साथ बाहर कहीं जाती है

फिर से उसी जगह पर खुद को पाती है


आँखों से ओझल न होने

वाली तस्वीर बनाती है

पति के हाथों से खाती है

फिर भी प्रेमी को

मन ही मन बसाती है


पति के सामने मुस्कुराती है

फिर भी ग़म के आंसुओं को छुपाती है

प्रेमी की पुरानी तसवीर फोन में छिपाती है

जो चीजें उसे भाती है,

उसे बार बार दोहराती है


देह से पति के साथ निभाती है,

फिर भी प्रेमी की याद को

बार बार मन से निकालती है।


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