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Ajay Yadav

Classics

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Ajay Yadav

Classics

अतीत

अतीत

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कहां तलाश करूं वो टुकड़े,

बिखर गए थे जो अतीत में।

कुछ मुस्कुराहटें रख छोड़ी थी,

कुछ आंसू भूल आया था।


अब मैं नितांत अकेला हूं,

असमर्थ हूं, 

इन टुकड़ों को समेटने में।

यूं लगता है जैसे जीवन

कड़ियों से जुड़ी 

जंजीर ही तो है,

जो खुद ही बिखर जाती है।


बस देखता रहता हूं, 

इन बिखरी कड़ियों को,

कोशिश में समेटने की

अपने अतीत को।

ढूंढने की कोशिश में

स्वयं के अर्थ को।


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