Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

मिली साहा

Abstract Tragedy

4.7  

मिली साहा

Abstract Tragedy

किसान का दर्द

किसान का दर्द

2 mins
475


आरुषि के धरा छूने से पहले कर्मपथ पर चल देता किसान,

संपूर्ण देश का पेट भरता जो अपनी कर्मभूमि का है जवान,

रुकता नहीं वो, थकता नहीं निभाता है अपना कर्तव्य सदा,

चाहे उसकी ज़िंदगी की चौखट पे खड़ा हो कोई भी तूफ़ान।


चिलचिलाती दुपहरी, परिश्रम पसीना बनकर बहता तन से,

भूख प्यास थकान अपनी तजकर सदैव कर्म करता मन से,

जी तोड़ मेहनत करके भी, बदल कहाँ पाती इनकी रवायत,

क़र्ज़ में डूबे रहते जीवन भर या हाथ ही धो बैठते जीवन से।


अन्नदाता किसानों की बदौलत ही तो, पेट भर पाता संसार,

परिश्रम का पूर्णतया पारितोषिक पाना, है इनका अधिकार,

किन्तु सरकारों, पूंजी पतियों की उपेक्षा और अमानवीयता,

तोड़ती जा रही है प्रतिदिन इनकी कमर इनका सब्रों-क़रार।


सोचो धरती का सीना चीरकर फसल न उगाता गर किसान,

कहांँ से मिलता अन्न हमें गर खेत में खड़ा ना होता किसान,

खून पसीने से सींचता वो,तब खेतों में लहलहाती है फसल,

फिर इनकी दर्द भरे हृदय की पुकार क्यों नहीं सुने भगवान।


कालाबाजारी करने वाले, अनगिनत भरे पड़े इस संसार में,

खेतों में खड़ी रह जाती है फसल उचित दाम के इंतजार में, 

एक तो मौसमी आपदाएंँ ऊपर से सर चढ़ा ब्याज का क़र्ज़,

बिखेर देती ख़्वाब इन आँखों के एक के बाद एक कतार में।


दब जाती किसानों की ज़िन्दगी क़र्ज़ का होता इतना भार,

व्यवस्थाएंँ खिलाफ इतनी कि सांँसे भी नहीं मिलती उधार,

बेबस है, लाचार है घुंट-घुंट पी रहा दर्द का ज़हर अन्नदाता,

सन्नाटे में इनकी चीखती ख़ामोशी, बयां कर रही अश्रुधार।


दो वक़्त की रोटी का आटा भी, इन्हें नसीब नहीं हो पाता,

अपना हक पाने को, दर-दर की ठोकरें खाता पालनकर्ता,

गमगुसार नहीं कोई यहाँ किसे अपना हाल-ए-दिल सुनाए,

सुनवाई कहांँ है इनके दर्द की, बस आंँसू पीकर रह जाता।


अनब्याही बेटी बैठी घर पर, नीलाम हो रहा है आशियाना,

मुश्किल कलम के लिए, इस पिता का दर्द बयां कर पाना,

क्या सजा है ये किसान होने की,धरती पर अन्न उगाने की,

क्या हक नहीं इनका अपने परिश्रम का उचित मोल पाना।


शान से पढ़ा करते थे हम किताबों में किसानों की गर्वगाथा,

रवि के निकलने से पहले ही हल उठाकर खेतों में चल देता,

किंतु किसानों की ऐसी दशा देख कर, अब समझ है आया,

कि खेतों में लहलहाती इन फसलों में, कितना दर्द है छुपा।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract