ये इंसान जा रहा किस ओर
ये इंसान जा रहा किस ओर
सच बोलने वाला अक्सर दुनिया में अकेला ही रह जाता है,
और झूठ का साथ देने वालों के पीछे यहाँ कारवां चलता है,
ये इंसान जा रहा किस ओर, सच्चे रिश्तों की पहचान नहीं,
अपने ही अपनों को देख कर, होठों पर लाते मुस्कान नहीं,
सच्चाई कह दो उनके मूँह पर तो, लोग हो जाते हैं नाराज़
झूठी तारीफ़ के तुम पुल बांँधों, फिर देखो उनका अंदाज़,
कुछ लोग तो ऐसे अवगुण गिनवा लो, निकाल देंगे हजार,
पर किसी के गुणों का बखान करने में, हो जाते हैं बीमार,
बड़ी ही अजीब है ये दुनिया मुंँह पे मीठा पीठ पीछे बुराई,
झूठ पचा लेते हैं आसानी से पर हजम नहीं होती सच्चाई,
चापलूसी और दिखावा करने वालों को समझते फरिश्ता,
जो वास्तव में फ़िक्र करे उन्हें ही दिखाते बाहर का रास्ता,
चेहरे पे लगाते जो मुखौटा चलते झूठ की चादर ओढ़कर,
जाने क्यों ये लोग चलना चाहते, उन्हीं का हाथ पकड़कर,
इतना ही नहीं रिश्तो में तो होने लगा है आजकल व्यापार,
प्यार की है कीमत नहीं, लेन-देन ही अपनेपन का आधार,
दौलत से नापते रिश्ते अनदेखा कर अपनेपन की गहराई,
ठुकरा कर सच्ची खुशियांँ कर रहे झूठे दिखावे की बुनाई,
साथ चलने वालों की कमी नहीं जब दौलत होती है पास,
मुश्किल घड़ियों में यही लोग तो छोड़ दिया करते हैं हाथ,
खोखले होते दिखावे के रिश्ते बस है निभाने की मजबूरी,
मक्खन लगाने वालों से बनाकर रखनी चाहिए थोड़ी दूरी,
क्योंकि ज़्यादा मक्खन तो सेहत के लिए भी हानिकारक,
रिश्ते कम पर सच्चे हों तभी मज़बूत होगी इनकी इमारत।
