मेरा यह भोलाभाला मन
ऊपर यह दुष्ट जगत जन
क्या करे,अब यह बेचारा
नादान को देते बहुत गम
कभी-कभी होता है,मन
हताशा की ओर भी गमन
जब दुष्ट हो जाते है,सफल
ओर कष्ट पाते है,सज्जन
पर यह सोच होते,प्रसन्न
जो होते है,यहां निष्कपट
रब रहता साथ,पल-पल
न घबरा रख तू,साफ मन
मेरा सुवासित हृदय चंदन
दे रहा है,उन्हें बदबू चमन
स्वछता लगती जिन्हें अब
यहां एक बहुत बड़ा गबन
फैल गया आज इतना तम
भीतर चन्द्र कर रहा,क्रंदन
मेरा यह भोलाभाला मन
ऊपर यह दुष्ट जगत जन
फैली होलिका,अब हर घट
ढूंढता प्रह्लाद,में हर चितवन
जो कर सके अन्तः,झूठ दहन
पर मिले न कहीं,प्रह्लाद मन
आज मिल न रहा है,अमन
आज फूलों से हो रही चुभन
भोलेमन न कह तू सच वचन
आज सच लगे,शूल छुअन
मेरा यह सत्य नादान मन
लोगो को लगता,नाग फन
झूठ-जाल की अच्छा लगे,
आज यहां पर सबको पवन
जिसकी झड़े है,फ़लक पर
टिकते नही है,कभी वो वन
वही आदमी बनता है,कुंदन
सत्य-अग्नि में करे,जो हवन
यूँ ही न बने,कोई मन कंचन
इसके लिये चाहिए भोलामन
पर जो खोये,दुनिया प्रपंच में
उन्हें कैसे दिखेगा,मासूम मन
भोलापन है,मेरा परम धन
बिन इसके अधूरा है,जीवन
बाला को लगे,यह सुंदर वन
इसमें खिलेंगे,भक्ति-सुमन
गर रखे तू साखी साफ मन
फिर पत्थर पर खिले कमल
जो भी जन रखे साफ मन
उसे न सताये जग सितम
जो रहता,अपने मे मगन
वो रहता,बस मस्त मलंग
भोलामन रब का बनाया
होता है,उपहार अनुपम
दिल से विजय
विजय कुमार पाराशर-"साखी"