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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy Inspirational

भोलाभाला मन

भोलाभाला मन

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मेरा यह भोलाभाला मन

ऊपर यह जगत दुष्ट जन

क्या करे, अब यह बेचारा

नादान को देते बहुत गम


कभी-कभी होता है, मन

हताशा की ओर भी गमन

जब दुष्ट हो जाते है, सफल

ओर कष्ट पाते है, सज्जन


पर यह सोच हो जाते, प्रसन्न

जो होते है, यहां पर निष्कपट

रब रहता उसके साथ, हरदम

नही घबरा रख तू, साफ मन


मेरा सुवासित हृदय चंदन

दे रहा, सबको बदबू चमन

स्वछता लगती सबको अब

यहां पर एक बड़ा बंधन


फैल गया आज इतना तम

भीतर चन्द्र कर रहा, क्रंदन

मेरा यह भोलाभाला मन

ऊपर यह जगत दुष्ट जन


फैली होलिका हर घट-घट

ढूंढता प्रह्लाद, में हर चितवन

जो करे भीतर, नित झूठ दहन

आज फूलों से हो रही चुभन


मेरा यह सत्य नादान मन

लोगो को लगता, नाग फन

झूठ-जाल की अच्छा लगे,

आज यहां पर सबको पवन


पर टिकते नही है, वो वन

जिसकी झड़े है, फ़लक पर

वही आदमी बनता है, कुंदन

सत्य-अग्नि में करे हवन


यूँ ही न बने, कोई मन कंचन

इसके लिये चाहिए भोला मन

पर जो खोये, दुनिया प्रपंच में

उन्हें न दिखेगा, मासूमियत धन


साखी, भोला है, भोला ही रह

यह तेरा मन का भोलापन

बालाजी को लगे, सुंदर वन

इसमें खिलेंगे, भक्ति-सुमन।


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