निकल मेरे घर से
निकल मेरे घर से
उन्होंने दरवाजा खोला और बोला
साली ब-----'-------'
निकल मेेेरे घर से,
अभी निकल।
मैंंने कहा-
घर से क्या !
इस देह से ही निकल जाती हूँ ।
पर,मेरे साथ आप के घर की
रूह भी चली जाएगी
क्योंकि
आप के घर के हर कोने को
अपना सर्वस्व दे सजाया है,
मेरी साँँसों से चलता है आप का घर।
मेरे जाते ही रह जाएगा
आप का खंडहर आप के साथ।
फेरों के हवन -कुंड में
"मैंं" की आहुुति दी ही नहीं,
इसलिए कभी "हम" बोला ही नहीं,
विवाह का पहला पाठ कभी
कंठस्थ किया ही नहीं,
मुझे कभी अपना माना ही नहीं,
दिल से घर बसाया ही नहीं,
प्यार को कभी समझा ही नहीं ।
"आई लव यू" के शोर से नहीं
प्रेम की गहराईयों से गहरा होता है प्यार,
एक-दूसरे के समर्पण मेें होता है प्यार,
एक-दूसरे के प्रति निष्ठा में होता है प्यार,
एक का दर्द दूसरे की आँख से छलकना
होता है प्यार,
"मैैं" "मै" मेें नहीं "हम" में बसता है प्यार,
घर की नींवों में रमता है प्यार,
बच्चों की किलकारियों से महकता है प्यार
पर , आप "मै" और "अहम्" में ही उलझे रह गए,
और अपनी ही गालियों की गलियों में भटक गए,
और इस धरा के स्वर्ग-से घर-मंदिर को खंडित कर गए,
अपने घर-मंदिर को खंडित कर गए ।