भूख और ज़िन्दगी
भूख और ज़िन्दगी
चाँद आज रोटी है, आसमान थाल है
भूखे की ज़िन्दगी का, बस यही मलाल है!
ख़त्म-ख़त्म है जूनून, तन बदन निढाल है
निचुड़ी सी आत्मा को निगल रहा काल है।।
भूख का ये दायरा, हर एक पल बदल रहा,
रोटी का चाँद लख, मन चकोर जल रहा
सड़ांध फूल से उठी, फिर चमन बिखर गया,
दिया जला फिर बुझा और समय ठहर गय।।
मेघ जिसकी आस थी, पड़ोस में बरस गया,
भूख व्यंग बन गयी, चकोर फिर तरस गया।
नेह शूल बन गया, विश्वास भूल बन गया,
मर गया चकोर चित्त और धूल बन गया।।
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