यादों का सफ़र
यादों का सफ़र


वो खट्टी-मीठी यादों के बीच का सफ़र,
वो कसमों और वादों के बीच का सफ़र।
आदतन इरादतन फ़िर याद आ गया,
वो दो लबों के स्वादों के बीच का सफ़र।
अलमस्त इश्क़ हो गया जो आप आ गए,
नस नस में खुमारी से बेहिसाब छा गए।
हम, हम ही थे की शान में पलकें बिछा गए,
आप, आप थे के गोया नींदें उड़ा गए।
था वक़्त यूं के आप से हटती न थी नज़र,
कैसे मिलेगी बा ख़ुदा जीने के रहगुज़र।
माज़ी में सोचते थे के कैसे कटेगा जो,
अब काटते अकेले हैं हम वही सफ़र।
अब काटते अकेले हैं हम वही सफ़र।।