कल को क्या समझायेंगे
कल को क्या समझायेंगे
आज हिमालय अडिग खड़ा भारत की रक्षा करने को,
कल ये शायद नहीं रहेगा घाव हमारे भरने को।
ये सारे हिमखंड पिघल कर बरबस हमें डुबाएंगे,
डरता हूँ, हम ना संभले तो कल को क्या समझायेंगे।।
नहीं दिलाई आज़ादी बस सत्याग्रह ने, फ़ाक़ों ने,
अपना लहू दिया है इसको बिस्मिल और अशफ़ाक़ों ने।
मंदिर मस्जिद के मलबे पर कब तक वोट कमाएंगे?
डरता हूँ, हम ना संभले तो कल को क्या समझायेंगे।।
झाड़ू संग बस सेल्फ़ी लेते गलियों में, चौराहों पर,
विषमय कचरा असल उगलते, हम नदियों में, राहों पर।
बिना गन्दगी साफ़ किये, कब अच्छे दिन आ पाएंगे?
डरता हूँ, हम ना संभले तो कल को क्या समझायेंगे।।
मेरी बेटी, मेरा गौरव कहते हैं इठलाते हैं ,
नहीं सुरक्षित वही बेटियां सत्य यही झुठलाते हैं।
लुटी लाज की अनदेखी कर, कब तक जश्न मनाएंगे?
डरता हूँ, हम ना संभले तो कल को क्या समझायेंगे।।
खाने भर को दवा तो होगी, गेहूं धान नहीं होंगे,
रॉकेट होंगे, रोबोट होंगे पर इंसान नहीं होंगे।
मुर्दों को भी कन्धा देने बस मोबाइल आएंगे,
डरता हूँ, हम ना संभले तो कल को क्या समझायेंगे।।
इस जग के कल्याण हेतु, सिद्धाँत हमें जनना होगा,
वसुधैव कुटुंबकम ज्ञान पुंज ले विश्वगुरु बनना होगा।
भारत हित महाभारत लड़ने वासुदेव ना आएंगे,
डरता हूँ, हम ना संभले तो क्या तारीख़ बनाएंगे।।
डरता हूँ, हम ना संभले तो कल को क्या समझायेंगे।।
